रात वीरान है बहुत वीरान आसमाँ लाश है जली हुई लाश जिस के सीने पे चियूँटियों की तरह एक अम्बोह है सितारों का रिज़्क़ चुनते हैं और खाते हैं ख़ामुशी से गुज़रते जाते हैं हाए ये रात हाए हाए ये रात कब बसर होगी कैसे गुज़रेगी कोई देखे मिरी नज़र से उसे कोई चारा मुझे बताए मिरा कुछ इलाज उस नज़र का कोई दवा या फिर आँखें ही नोच ले मेरी है मसीहा कोई तबीब कोई कौन मेरे अलावा देखेगा जो मिरी आँख पर भी है दुश्वार ग़म की अज़्मत को कौन पहचाने छोड़ कर ज़िंदगी का कारोबार किसे फ़ुर्सत कि आँख उठाए ज़रा शब की वीरानियों का नौहा लिखे आसमाँ का जनाज़ा पढ़ डाले और सितारों का रास्ता रोके किसे फ़ुर्सत है मुझ से बात करे मेरी आँखों में झाँक कर दम-भर मुझ से पूछे कि मैं ने क्या देखा भरी दुनिया में कौन दीदा-वर कौन रखता है मेरी जैसी नज़र कौन पूछे कि मैं ने क्या देखा ग़म की अज़्मत को कौन पहचाना किसे फ़ुर्सत कि मुझ को पहचाने