शहीदों का सरताज जन्नत-मक़ाम मोहब्बत की मेराज ज़ी-एहतिराम ग़ुलामान-ए-आलम की पुश्त-ओ-पनाह अहिंसा के बंदों की उम्मीद-दगाह वो ग़म भी वतन का था ग़म-ख़्वार भी रज़ाकार भी और सालार भी अहिंसा का पैरव मगर शेर-ए-मर्द मोहब्बत में यकता सदाक़त में फ़र्द हुआ जिस के दम से ब-सद एहतिशाम सियासत से ऊँचा सदाक़त का नाम वो आदम की अज़्मत का आईना-दार वो ज़र्रा कि चमका था ख़ुरशीद-दार वो जिस ने दिया आदमियत को औज वो जिस ने लड़ाई अहिंसा की फ़ौज क़फ़स है कोई अब न सय्याद है वतन जिस की हिकमत से आज़ाद है वो नूर-ए-ज़िया-बार सीमा-ए-ख़ैर वो जूया-ए-ख़ैर-ओ-शनासा-ए-ख़ैर फ़िरिश्ता-खिसाल-ओ-फ़रिश्ता-सियर मलक दर-हक़ीक़त ब-ज़ाहिर बशर मोहब्बत की वो इक शबीह-ए-हसीं उख़ुव्वत का वो एक माह-ए-मुबीं वो हक़ आगही की कछारों का शेर सदाक़त के मैदाँ का मर्द-ए-दिलेर फ़लक-आफ़रीं और गर्दूँ-तराज़ मरीज़ान-ए-पस्ती का वो चारासाज़ वो कोताह-बीनों की शम-ए-शुऊ'र वो गुमराहियों में हिदायत का नूर वो जिस ने उठाया ज़माने का बार किया जिस ने जाबिर को बे-इख़्तियार वो बे-मिस्ल क़ाइद मुअस्सर ख़तीब वो लश्कर में जिस के अमीर-ओ-ग़रीब वो जिस ने करोड़ों के काटे हैं बंद वो अरफ़ा वो आ'ला वो सब से बुलंद वो जिस की अता है निराली अता वो जिस ने दिया इक नया फ़ल्सफ़ा ज़मीं पर बहा उस जरी का लहू तफ़ोबर तू ऐ चर्ख़-ए-गर्दां तफ़ू