वक़ार-ए-मादर-ए-हिन्दोस्ताँ थे गाँधी जी हर एक फ़र्द के हमदर्द ग़म-गुसार-ए-वतन सदाक़तों के परस्तार झूट के दुश्मन निज़ाम-ए-अम्न के रूह-ए-रवाँ थे गाँधी जी वक़ार-ए-मादर-ए-हिन्दोस्ताँ थे गाँधी जी वो एकता के पुजारी हर एक के भाई वो फ़ख़्र-ए-क़ौम वो इंसानियत के शैदाई ज़मीं पे रह के भी इक आसमाँ थे गाँधी जी वक़ार-ए-मादर-ए-हिन्दोस्ताँ थे गाँधी जी कली कली को तबस्सुम का एक ढंग दिया हर एक फूल को अपने लहू का रंग दिया बहार-ए-गुलशन-ए-अम्न-ओ-अमाँ थे गाँधी जी वक़ार-ए-मादर-ए-हिन्दोस्ताँ थे गाँधी जी हर एक दिल में जलाया चराग़-ए-आज़ादी है जिन के ख़ून से शादाब बाग़-ए-आज़ादी हमारे मुल्क के वो बाग़बाँ थे गाँधी जी वक़ार-ए-मादर-ए-हिन्दोस्ताँ थे गाँधी जी सुनी न बात तशद्दुद भरे उसूलों की महक लुटाई अहिंसा के नर्म फूलों की ख़ुलूस-ओ-इज्ज़ के इक गुलिस्ताँ थे गाँधी जी वक़ार-ए-मादर-ए-हिन्दोस्ताँ थे गाँधी जी