अल-अमाँ ताज़ियाने गुनहगार हाथों में हैं बे-गुनाहों की ख़ैर वो जो क़ाज़ी अदालत गवाह ओ सनद इल्म-ओ-दानिश और तहरीर से मुंसलिक इक रिवायत की तहज़ीब थी वो कहीं खो गई एक लम्बा सफ़र रुक गया किस लिए रुक गया अल-हज़र! अल-हज़र! ये दरिंदा-सिफ़त नीम वहशी मुब्तला-ए-जुनूँ ताज़ियाने लिए ताज़्यानों की ज़द में तड़पता बदन ख़ूँ उगलता बदन कैसी कुचली हुई ख़्वाहिशों वहशियाना हवस-कारियों का निशाना बना किस जिबिल्लत की तस्कीं का सामाँ हुआ अल-मदद अल-मदद ऐ ख़ुदा! ताज़ियाने गुनहगार हाथों में हैं बे-गुनाहों की ख़ैर!