निगाह-ए-शौक़ में जल्वे जो तेरे आते हैं तजल्लियों के नए तौर जगमगाते हैं तलाश-ए-हक़ में जिधर भी जहाँ भी जाते हैं तिरे ही नक़्श-ए-क़दम रह-गुज़र में पाते हैं तिरे जमाल से ऐ बंदा-ए-ख़ुदा साबित ख़ुदा के नूर से इंसाँ बनाए जाते हैं कभी जो दैर-ओ-हरम के क़रीब तक न गए तिरी समाधी के आगे वो सर झुकाते हैं बयान एक तिरा नक़्श हो गया दिल पर सुनाने वाले फ़साने बहुत सुनाते हैं ये किस मुग़न्नी-ए-कामिल की बज़्म-ए-रंगीं है यहाँ जो आते हैं वो नग़्मा-बार आते हैं चमन उन्ही का ये रंग-ए-चमन भी उन का है जो बिजलियों से यहाँ आशियाँ बनाते हैं जहान-ए-अम्न में तलवार चल नहीं सकती ख़ुदा के बंदे मगर आज़माए जाते हैं ये बज़्म-ए-रिंद नहीं महफ़िल-ए-तरीक़त है यहाँ हयात के साग़र पिलाए जाते हैं मैं जा रहा हूँ लिए एक कारवान-ए-हयात हज़ार रहज़न-ए-हस्ती मुझे डराते हैं जो बज रहा है ज़माने में साज़ तेरा है जो गा रहे हैं फ़क़त तेरे गीत गाते हैं वो तुझ को और तिरा मुद्दआ' नहीं समझे तुझे बशर से जो फ़ौक़-उल-बशर बताते हैं जिन्हों ने चूम लिए पाँव तेरी अज़्मत के सितारे बन के वो ज़र्रे भी झिलमिलाते हैं चराग़-ए-राह-ए-सदाक़त बता किधर जाएँ कि मंज़िलों के अंधेरे हमें बुलाते हैं तिरे ही फ़ैज़ से अबना-ए-नज़म-ए-नौ 'हिन्दी' नई ज़मीन नया आसमाँ बनाते हैं