कुंज-ए-क़फ़स में जल्वा-ए-सहन-ए-चमन कहाँ बुलबुल तो ढूँढती है गुल-ओ-यासमन कहाँ गुम हो गई है आ के जहाँ राह-ए-कू-ए-दोस्त लाया भी तो मुझे मिरा दीवाना-पन कहाँ सरमाया-ए-नशात सही आमद-ए-बहार लेकिन उसे नसीब तिरा बाँकपन कहाँ ऐ वो मिरे शबाब की रातें गुज़र गईं अब वो मिरी नशात भरी अंजुमन कहाँ 'शातिर' चलो बसाएँ दयार-ए-हबीब को इस कामिटी में जल्वा-ए-गंग-ओ-जमन कहाँ