गया साल जाते हुए मेरी दहलीज़ पर राख का ढेर झुलसे हुए जिस्म टूटे हुए उज़्व सितंबर की बर्बादियों पे लिखे मर्सियों और अख़बार की सुर्ख़ियों में तराशों में लिपटी हुई ज़र्द मासूम लाशें ठिठुरते हुए सर्द सूरज की पहली किरन में बंधी वर्ल्ड ऑर्डर की मिटती हुई दस्तावेज़ों के अम्बार को छोड़ कर जा चुका है