इक था गेटू गिरे उस के दो मोर थे इक का काला था सर इक के पीले थे पर दाना खाते थे वो दुम हिलाते थे वो शाम को दिन ढले अपने घर से चले थे बड़ी लहर में आ गए शहर में कुछ वहाँ सैर की कुछ यहाँ सैर की टरटराते हुए गाना गाते हुए जब अंधेरा हुआ गेटू घबरा गया दिल में कहने लगा ये है क्या माजरा अब तक आए नहीं जाने क्या वो कहीं रास्ता खो गए या कहीं सो गए आप जाता हूँ मैं उन को लाता हूँ मैं बोली गेटू की माँ तुम चले हो कहाँ छोड़ दो छोड़ दो ख़ुद ही आएँगे वो सर खुजाते हुए दुम हिलाते हुए बोला गेटू गिरे मोर दोनों मिरे सख़्त नादान हैं सख़्त अंजान हैं वो तो डर जाएँगे घुट के मर जाएँगे बोली गेटू की माँ बात सुन मेरी जाँ तू है गेटू गिरे तू उन्हें छोड़ दे देखते देखते मोर घर आ गए सर खुजाते हुए दुम हिलाते हुए बोले गेटू मियाँ बोलो तुम थे कहाँ इतने चालाक हो इतने बेबाक हो फिर जो जाओगे तुम मार खाओगे तुम उस की इस बात से मोर ख़ुश हो गए पर लगे खोलने फिर लगे बोलने दुम हिलाने लगे गाना गाने लगे