टोपी जनेऊ टीका माला छाप तिलक की झूटी हाला हैं ये सब बाज़ार की चीज़ें नक़ली और बेकार की चीज़ें तन मन में गर कोढ़ हुआ है कब उस को रेशम ने ढका है फीका है हर एक लिबास दिल में अगर नहीं विश्वास काली सफ़ेद अगर हैं नज़रें जीवन पे लगती हैं क़ैदें फीके फीके चाँद सितारे इन्द्र-धनुष के रंग भी सारे ऐसा है पर मेरा घर जिस में नहीं दीवार या दर किरनों का साया पड़ता है इंसाँ बस इंसाँ रहता है मेरा घर है रूह मिरी रस्ता मंज़िल सभी वही