घाव By Nazm << मगर नज़्म >> तिरे इख़्तियार की हद नहीं तिरे फ़ैसलों से मफ़र नहीं मिरे दिल के घाव अमीक़-तर तिरे फ़ैसलों की हैं ज़र्ब से मैं तिरी ख़ुशी में जो ख़ुश रही तो मिरी ख़ुशी का ख़याल कर कोई ऐसा दारू कहीं से ला मिरे गहरे गहरे से घाव भर Share on: