अस्प ईराँ में अरब में फ़रस कहलाता है ये और हिन्दोस्तान में घोड़ा कहा जाता है ये जान दे देता है मालिक के लिए ये जानवर ये है ताक़त-वर बहादुर ये है बा-हिम्मत निडर जंग तलवारों से होती थी जब हिन्दोस्तान में ये दिखाता था शुजाअ'त जंग के मैदान में खेल हॉकी की तरह पोलो भी होता था मगर खेलते थे लोग पोलो भी उसी पर बैठ कर है ज़रूरत उस की अब ताँगा चलाने के लिए पालते हैं अब उसे रोज़ी कमाने के लिए इक ज़रूरत और भी घोड़े की है इस देस में जो जुआरी हैं वो दौड़ाते हैं इस को रेस में शुक्र करता है ये खा कर नाँद में जो पास हो हों चने भीगे हुए 'साहिल' कि सूखी घास हो