रात का वक़्त है कोई आहट न कर बात जो भी हो मन में वो मन में ही रख बोल देने से तकलीफ़ घटती नहीं बल्कि बट जाती है और बढ़ जाती है रात के वक़्त तो चुप ही रहना मुनासिब है कहना नहीं एक भी बात मुझ पर जो भारी पड़े कोई भी बात जो मुझ को सोने न दे और सुन बात सुन मेरे सुन लेने से ये परेशानियाँ हल न होंगी कभी मैं तेरा एक मा'मूली आशिक़ ही हूँ चारागर भी नहीं कोई ऐसी परेशानी हो जिस का हल मेरे सीने से लगते ही मिल जाएगा तो ही ज़हमत उठा मुझ को बस वो बता जिस में जिस्मों की तासीर काम आ सके इस बरहना बदन पर बदन की ही तदबीर काम आ सके और ये मुमकिन न हो तो वही बात है रात का वक़्त है