सिपह-गर ऐ शहीद-ए-हुर्मत-ए-अर्ज़-ए-वतन तेरा लहू बुनियाद में है ऐसी नादीदा फ़सीलों की जो हर जानिब वतन की सरहदों पर दुश्मनों की राह में हाइल रहेंगी तेरी मर्ग-ए-बे-निशाँ से हो गया दाइम निशाँ तेरे वतन का तू रहा गुमनाम लेकिन ता-क़यामत नाम तेरी सर-ज़मीं का याद रक्खा जाएगा