गुम-शुदा By Nazm << नज़्म एक वाक़िआ >> चलो फिर ख़ुद को ढूँडें ज़ात के नज़ारे की कोशिश करें देखो वो भूरा दश्त-ए-इम्काँ दूर तक फैला हुआ है सामने हद्द-ए-नज़र तक गहरी तारीकी की नागन रक़्स-फ़रमा है बिखरती रेत पर कोई भी नक़्श-ए-पा नहीं है Share on: