सिर्फ़ तेरी तलाश रहती है अक्स हर वक़्त आ के तेरा ही मन के आँगन में रक़्स करता है जैसे कोई उदास सी ख़ुश्बू मेरे तन-मन में फैल जाती है लौट जाती हूँ अपने माज़ी में तेरी यादें तिरे ख़याल लिए वो सभी दिन मिरी वो सब रातें याद आती हैं तेरी सब बातें वक़्त फिर आ के थम सा जाता है धड़कनें दिल की रुक सी जाती हैं फिर अचानक सहम सी जाती हूँ टूट कर मैं बिखर सी जाती हूँ हसरतें अपनी अपने ख़्वाबों को इस तरह फिर समेट लेती हूँ तेरी यादें लपेट लेती हूँ बैठ कर फिर ये सोचती हूँ मैं गुम-शुदा वक़्त लौटता है क्या