हैरत By Nazm << सच बंद दरीचे >> न गुफ़्तुगू का कमाल आहंग न बात के बे-मिसाल मा'नी न ख़ाल-ओ-ख़द में वो जाज़बिय्यत जो जिस्म-ओ-जाँ को असीर कर ले न मुश्तरक कोई अक्स-ए-ख़्वाहिश मगर ये क्या है मैं किस की ख़ातिर वफ़ा के रस्तों पे लिख रही हूँ मुसाफ़िरत की नई कहानी Share on: