वो कहता है वो सच बोलता है ऐसा सच जो दिल को चीर दे रूह में शिगाफ़ डाल दे वो सच ही तो कहता है उस के सच बोलने की आदत से कितने दिल फ़िगार और रूहें छलनी होती हैं उस के सच का ज़हर रोज़ वो नहीं मैं ही पीती हूँ उस के सच का निशाना मैं ही बनती हूँ उसे अपनी हक़-गोई का कोई इनआ'म सनद ए'ज़ाज़ मिलना चाहिए सो मैं ने अपना छलनी दिल काँटों के हार में पिरो कर उसे पहना दिया है ज़ख़्मों का ताज बना कर उस के सर पर सजा दिया है