मुझे अच्छा नहीं लगता खड़ा ख़ामोश सा दरिया कोई हलचल हो तूफ़ाँ हो कोई तो बादबाँ टूटे कोई तो नाख़ुदा ऐसा हो जो बाद-ए-मुख़ालिफ़ को पलट दे ज़ोर-ए-बाज़ू से ना कश्ती डगमगाए उस की लहरों के तलातुम पर ना कश्ती डोलती जाए हवा के रुख़ पे साहिल पर बहुत गिर्दाब भी होंगे बहुत भौंचाल आएँगे हो ऐसा ना-ख़ुदा कि जो भँवर में डूब न जाए ख़ुद अपनी ज़ात के ईक़ान पर बाहर निकल आए यक़ीं हो आप पर तो साहिलों को छोड़ देते हैं भरोसा हो बसीरत पर तो दरिया मोड़ देते हैं यूँ अपने आप में तूफ़ान की हलचल मचा रक्खो कि तुग़्यानी नहीं आती तो दरिया सूख जाते हैं