इक सफ़र की शुरूआ'त हो सकती है तुम अगर हाँ कहो तुम अगर हाँ कहो शाह-राहों में गलियों में भटकेंगे हम कोई मंज़िल न हो न हो ज़ाद-ए-सफ़र कोई मंज़िल न हो न हो ज़ाद-ए-सफ़र हम-सफ़र हम-सफ़र हम-सफ़र हम-सफ़र और बुनने में तुम को महारत तो है ख़्वाब बुनते चलेंगे डगर से डगर तुम अगर हाँ कहो तुम अगर हाँ कहो हम-सफ़र हम-सफ़र हम-सफ़र हम-सफ़र तल्ख़ियाँ ज़िंदगी की बिखर जाएँगी और परछाइयाँ भी नज़र आएँगी ग़म सिमट जाएगा रात कड़वे हलाहिल में घुल जाएगी तुम अगर हाँ कहो तुम अगर हाँ कहो हम-सफ़र हम-सफ़र हम-सफ़र हम-सफ़र