मिरी प्यारी अन्ना मेरी अन्ना जानी सुना दे मुझे कोई ऐसी कहानी कि जिस में परिस्तान का सा समाँ हो ज़मीं फूल की चाँद का आसमाँ हो सितारे बरसते हों जिस की फ़ज़ा में हो ख़ुशबू का तूफ़ान जिस की हवा में जहाँ शहद-ओ-शर्बत की नहरें रवाँ हों जहाँ हीरे याक़ूत की कश्तियाँ हों और उन में कोई गीत गाती हों परियाँ शुआ'ओं के बरबत बजाती हों परियाँ पहाड़ उस में जितने हों सारे तिलाई और उन के सुहाने नज़ारे तिलाई अंधेरा न हो नाम को भी जहाँ में हो इक चाँद रौशन हर इक शम्अ-दाँ में महल हो हर इक संग-ए-मरमर का जिस में हर इक ताक़ हो लाल-ओ-गौहर का जिस में न बूढ़ा हो कोई न कोई जवाँ हो फ़क़त मैं हूँ और मेरी अन्ना वहाँ हो मिरे पर हों उड़ता फिरूँ मैं हवा में हुकूमत हो मेरी वहाँ की फ़ज़ा में ग़रज़ मेरी अन्ना मिरी अन्ना जानी सुना दे मुझे कोई ऐसी कहानी