ज़हे जमाल ज़हे आलम-ए-शबाब तिरा नज़र की छेड़ से बजता था जब रबाब तिरा दम-ए-विदाअ' वो रंगीं उदासियाँ तेरी हनूज़ याद है वो दीदा-ए-पुर-आब तिरा वो झूम-झूम के अब्र-ए-बहार का आना वो बिजलियों की तड़प और वो इज़्तिराब तिरा वो इब्तिदा-ए-मोहब्बत वो चाँदनी रातें वो सेहन-ए-बाग़ में हँसता हुआ शबाब तिरा सँभल-सँभल के मिरी सम्त वो निगाह तिरी बचा-बचा के नज़र मुझ से वो ख़िताब तिरा मिरा हरीम-ए-तमन्ना था आसमाँ से बुलंद उस आसमाँ पे चमकता था आफ़्ताब तिरा अभी नज़र में है राज़-ओ-नियाज़ का आलम वो मेरा इज्ज़-ए-मोहब्बत वो पेच-ओ-ताब तिरा कभी सितम के लिए और कभी करम के लिए निगाह-ए-शौक़ में डूबा हुआ हिजाब तिरा मिरा सवाल ब-क़द्र-ए-हुजूम-ए-शौक़-ए-निहाँ हया की आड़ में छुपता हुआ जवाब तिरा हनूज़ याद है 'जौहर' को ऐ निगार-ए-जमील वो इल्तिफ़ात के पर्दे में इज्तिनाब तिरा