हर शाम तुम आते हो गुज़र जाते हो मेरी आँखें सुब्ह से शाम और शाम के मल्गजी उजाले में तुम्हारी आमद की मुंतज़िर तुम्हें देखते ही रौशन हो उठती हैं और जब तुम नहीं आते शाम उदासी की चादर ओढ़ लेती है दिल डूबने लगता है मैं सोचता हूँ ऐसा क्यों होता है ग़ोता-ख़ोर समुंदर में ग़ोते लगा कर गौहर तलाश करते हैं हर ग़ोता गौहर-ए-नायाब की जुस्तुजू है तुम समुंदर हो न मैं ग़ोता-ख़ोर लेकिन मुझे बताओ वो कौन सा गौहर-ए-नायाब है जिस की तलाश जिस की मुझे तलाश है मुझे है