एक दिन वक़्त का झुलसा हुआ मैला चेहरा इक दिल-अफ़रोज़ जिला पाएगा सरगुज़िश्त-ए-ग़म-ए-दौराँ का मुसन्निफ़ इक दिन सारी ना-गुफ़्ता हिकायात को जाएगा वो दिल-आराम से मौसम वो ख़ुनुक वादी-ए-रंग जिन की ख़ुश्बू पे इजारा रहा सफ़्फ़ाक सितम-रानों का जिन के फूलों में फलों में था लहू सैकड़ों जाँ-सोख़ता इंसानों का अब वो तारीख़-ए-ज़ुबूँ वक़्त न दोहराएगा वो पसीना जो टपकता है थके और तपे जिस्मों से मेरे एहसास के माथे पे नमी है जिस की एक दिन रू-ए-ज़मीं का वही ग़ाज़ा बन कर अपनी खोई हुई मेहनत का सिला पाएगा और शद्दाद-सिफ़त ग़म का भयानक आसेब मौत के घाट उतर जाएगा