हौसला By प्रेरणादायक, Nazm << एक ज़रूरी नज़्म मैं औरत ज़ात हूँ मुझ को व... >> यूँही गुम-सुम खड़ी थी मैं उसे इज़्न-ए-सफ़र दे कर हज़ारों बार ख़ुद से ही लड़ी थी मैं किसी को लौट जाने की ख़बर दे कर फ़क़त इक पल लगा उस को मिरी दहलीज़ की हद पार करने में मुझे सदियाँ लगीं ख़ुद को मगर तय्यार करने में Share on: