दिल ही में दर्द-ए-दिल रहे लब पर फ़ुग़ाँ न हो राज़-ए-निहाँ का और कोई राज़-दाँ न हो इक जाम में जो जल्वा-ए-कौन-ओ-मकाँ न हो ज़ाहिद मुरीद-ए-हज़रत-ए-पीर-ए-मुग़ाँ न हो ये क्या कहा कि राज़-ए-मोहब्बत अयाँ न हो मुमकिन नहीं कि आग लगे और धुआँ न हो दार-ओ-मदार तेरे ही लुत्फ़-ओ-करम पे है तू मेहरबाँ न हो तो कोई मेहरबाँ न हो इंसान वो करे जो मलक भी न कर सकें फ़िक्र-ए-मआ'श 'नूर' अगर दरमियाँ न हो