तुम हिजरत का कर्ब नहीं जानते तुम ने 'इंतिज़ार-हुसैन' के अफ़्साने नहीं पढ़े 'नासिर-काज़मी' के अशआ'र में छुपे हुए नौहे नहीं सुने जो हिन्दोस्तान को बनते देखा होता घरों को जलते देखा होता इस्मतें लुटती गर्दनें कटती ज़िंदगी बिखरती देखी होती तो शायद तुम हिजरत का कर्ब जान लेते फास्टफूड के शौक़ीन अपने हाल में गुम तुम्हारा कोई मज़हब कोई नज़रिया नहीं है पेट की भूक से जिंस की आसूदगी तक हैवानी फ़ितरत इस हिजरत के दर्द को कैसे महसूस कर सकती है