मैं बच्चा हूँ मैं बच्चा हूँ कभी मैं भी बड़ा हूँगा अभी से कैसे बतलाऊँ कि इस दुनिया में क्या हूँगा मैं जी बचपन से पढ़ने और लिखने में लगाऊँगा कभी खेलूँगा ख़ुश हो कर कभी पढ़ने को जाऊँगा मुसीबत कुछ भी पेश आ जाए हरगिज़ मुँह न मोडूँगा उठूँ जिस काम के करने को पूरा कर के छोड़ूँगा मैं इस दुनिया के हर इल्म-ओ-हुनर से आश्ना हो कर बजा लाऊँगा मुल्क और क़ौम की ख़िदमत बड़ा हो कर मैं अपने सब्र और हिम्मत से दुख पर फ़त्ह पाऊँगा मैं तकलीफ़ें उठाऊँगा मगर कुछ कर दिखाऊँगा मैं अपने मुल्क की क़ौमों को आपस में मिला दूँगा जो लड़ते हैं उन्हें शर्बत मोहब्बत का पिला दूँगा मुसलमान और हिन्दू जैन बुध सिख और ईसाई मिरी कोशिश से उस दिन सब के सब हो जाएँगे भाई ये सारी ताक़तें मिल कर वतन के काम आएँगी नई इक रूह इस में फूँक कर इस को जिलाएँगी नए सिर से वतन के दिल में फिर इक जोश उट्ठेगा सनाअत का ज़राअत का तिजारत का हुकूमत का बढ़ेगी मुल्क की रौनक़ बढ़ेगी इस की आबादी जिधर देखो उधर राहत जिधर देखो उधर शादी हुआ ऐसा तो 'नय्यर' हम ख़ुशी के गीत गाएँगे ग़ुलामी के ज़माने की कहानी भूल जाएँगे