एक औरत की ज़बान से चल मिरी सुंदर सहेली हम कहीं छुप जाएँगे आज है होली का दिन पीतम मिरे घर आएँगे सामने जब मैं न आऊँगी बहुत घबराएँगे हर जगह ढूँडेंगे मुझ को ढूँढ कर शरमाएँगे सामने आ जाऊँगी पीतम के ख़ुश हो जाएँगे उन में मैं खो जाऊँगी और मुझ में वो खो जाएँगे मेरे मन के छेड़ने को मुझ से वो बैठेंगे दूर मैं जो उलझूंगी तो पीतम मुस्कुराएँगे ज़रूर उठ रही है लहर सी लहरा रहा है मेरा मन हो सके तो चूम लूँगी आज पीतम के चरन छीन कर आकाश की गोदी से तारे लाऊँगी उन को भी दारुँगी और मैं ख़ुद भी दारी जाऊँगी सेज फूलों की बनाऊँगी मैं पीतम के लिए बर्रा से कह दो कि अब फ़ुर्सत नहीं ग़म के लिए आज पीतम आएँगे आएगी मेरे घर बहार देख बिगड़ा तो नहीं ऐ आइने मेरा सिंघार ऊदी ऊदी बदलियों से छन के गिरती है फुवार आज पीतम आएँगे मैं हो रही हूँ बे-क़रार बन गया है ज़र्रा ज़र्रा मेरे घर का चश्म-ए-हूर आज पीतम आएँगे आएगा मेरे घर में नूर छिड़ रही है रागनी मन की रबाब-ओ-चंग से आज नहलाऊँगी पीतम को गुलाबी रंग से भीग जाएँगे तो दामन से हवा दूँगी उन्हें बंद कर दूँगी द्वारे आज रोकूँगी उन्हें सर्व के साए में पाती हूँ मैं पीतम की झलक आज हर आवाज़ में सुनती हूँ साग़र की खनक पी मिरे घर आएँगे शायद नहीं तुझ को ख़बर ऐ पपीहे बावरे टोपी कहाँ बोला न कर