मियाँ तू हम से न रख कुछ ग़ुबार होली में कि रूठे मिलते हैं आपस में यार होली में मची है रंग की कैसी बहार होली में हुआ है ज़ोर-ए-चमन आश्कार होली में अजब ये हिन्द की देखी बहार होली में अब इस महीने में पहुँची है याँ तलक ये चाल फ़लक का जामा पहन सुर्ख़ी-ए-शफ़क़ से लाल बना के चाँद के सूरज के आसमाँ पर थाल फ़रिश्ते खेलें हैं होली बिना अबीर-ओ-गुलाल तो आदमी का भला क्या शुमार होली में सुना के होली जो ज़ोहरा बजाती है तम्बूर तो उस के राग से बारह बुरूज हैं मामूर छूओं सितारों के ऊपर पड़ा है रंग का नूर सभों के सर पे ये हर दम पुकारती है हूर जो घिर के अब्र कभी इस मज़े में आता है तो बादलों में वो क्या क्या ही रंग लाता है ख़ुशी से रा'द भी ढोलक की गत लगाता है हवा को होलियाँ गा गा के क्या नचाता है तमाम रंग से पुर है बहार होली में चमन में देखो तो दिन रात होली रहती है शराब-ए-नाब की गुलशन में नहर बहती है नसीम प्यार से ग़ुंचे का हाथ गहती है तो बाग़बान से बुलबुल खड़ी ये कहती है न छेड़ मुझ को तू ऐ बद-शिआ'र होली में गुलों ने पहने हैं क्या क्या ही जोड़े रंग-ब-रंग कि जैसे लड़के ये माशूक़ पहनते हैं तंग हवा से पत्तों के बजते हैं ताल और मिर्दंग तमाम बाग़ में खेलें हैं होली गुल के संग अजब तरह की मची है बहार होली में अमीर जितने हैं सब अपने घर में हैं ख़ुश-हाल क़बाएँ पहने हुए तंग तंग गुल की मिसाल बना के गहरी तरह हौज़ मिल के सब फ़िलहाल मचाए होलियाँ आपस में ले अबीर-ओ-गुलाल बने हैं रंग से रंगीं निगार होली में ये सैर होली की हम ने तो बिरुज में देखी कहीं न होवेगी इस लुत्फ़ की मियाँ होली कोई तो डूबा है दामन से ले के ता चोली कोई तो मुरली बजाता है कह कनहैया जी है धूम-धाम पे बे-इख़्तियार होली में घरों से साँवरी और गोरियाँ निकल चलियाँ कुसुम्बी ओढ़नी और मस्त कुर्ती उछलय्याँ जिधर को देखें उधर मच रही हैं रंग-रलियाँ तमाम ब्रिज की परियों से भर रहीं गलियाँ मज़ा है सैर है दर हर कनार होली में जो कुछ कहानी है अबला बहुत पिया मारी चली है अपने पिया पास ले के पिचकारी गुलाल देख के फिर छाती खोल दी सारी पिया की छाती से लगती वो चाव की मारी न ताब दिल को रही ने क़रार होली में जो कोई सियानी है इन में तो कोई है ना-कुनद वो शोर-बोर थी सब रंग से निपट यक चंद कोई दिलाती है साथिन को यार की सौगंद कि अब तो जामा-ओ-अंगिया के टोले हैं सब बंद फिर आ के खेलेंगे हो कर दो-चार होली में 'नज़ीर' होली का मौसम जो जग में आता है वो ऐसा कौन है होली नहीं मनाता है कोई तो रंग छिड़कता है कोई गाता है जो ख़ाली रहता है वो देखने को जाता है जो ऐश चाहो सो मिलता है यार होली में