होंटों से कम गर्म महकती साँसों से नम आँखों से तुम ने पूछा क्या हम से मोहब्बत करते हो बस एक हर्फ़ मुँह से निकला हाँ कितना मा'मूली छोटा सा ये ना-मुकम्मल लफ़्ज़ है कैसे दिखलाएँ तुम को उस पोशीदा ख़्वाबीदा वादी को जिस में नूर की बारिश होती है झरने बहते हैं नग़्मों के और बसे क़द-आवर पेड़ चिनार के अपने झिल-मिल सब्ज़ ख़ुनुक सायों को फैलाते हैं जैसे ख़ुद जीने के रस्ते ये सब दौलत दिल को तुम ने ही तो दी है