ख़ुद-सरी से ख़फ़ा किस लिए चाहतों का सफ़र ख़ुद-सरी है हसरतों की सलामत-रवी बे-समर ना-मुरादों की चारागरी है और पस-ए-पुश्त तेरी बुराई करें तेरे दुश्मन कि हम तन-बदन से तलबगार तेरे अगर ना-रसा आरज़ू से इबारत वफ़ा है तो हो हम कि सरशार हैं वस्ल से हम गुनहगार तेरे