सच्चे ख़्वाब और झूटी आँखें अंधे रस्तों की हमराही अंजान तहय्युर का पानी और इस्तिफ़्हामी लहजों की दो-धारी तलवारें तेरी क़ुर्ब-सराए से ये ज़ाद-ए-सफ़र साथ लिया है रुख़्सत के रुख़्सारों पर आँसू बन कर गिरते लम्हे के हाथों में अपने होने का आईना दे मैं उस काँच बदन से बे-नाम अंदेशों का ज़ंगार खुरच डालूँ और उजले पानी में देख सकूँ हिज्र-नगर के तपते सूरज के नीचे उम्र सफ़र का सहरा कितने कोस पड़ा है