मुझ से मत पूछ ''मिरे हुस्न में क्या रक्खा है'' आँख से पर्दा-ए-ज़ुल्मात उठा रक्खा है मेरी दुनिया कि मिरे ग़म से जहन्नम-बर-दोश तू ने दुनिया को भी फ़िरदौस बना रक्खा है मुझ से मत पूछ ''तिरे इश्क़ में क्या रक्खा है'' सोज़ को साज़ के पर्दे में छुपा रक्खा है जगमगा उठती है दुनिया-ए-तख़य्युल जिस से दिल में वो शोला-ए-जाँ-सोज़ दबा रक्खा है