एक बे-चेहरा ख़्वाब एक बे-नाम ख़ुशबू में लिपटा हुआ एक ख़ुशबू कि जिस ने कोई रंग पहना न हो एक ख़ामोश लय एक लय मेरे कानों में रस घोलती अपनी उर्यानियों में लपेटा हुआ एक सुर एक सुर जिस की बुन्तर में आवाज़ की गाँठ आई न हो जिस के शफ़्फ़ाफ़ तन पर किसी लफ़्ज़ का कोई गहना न हो लफ़्ज़ से मावरा एक नग़्मा किसी ने जो गाया न हो जिस में बरते हुए एक भी हर्फ़ का कोई साया न हो जो किसी साँस में भी समाया न हो ये बहुत हो हमें और कुछ उस से कहना न हो