ये मिरी पहली ईद है जिस में तू नहीं है तो सोच कर तुझ को मैं तिरी याद से मिला हूँ गले वो सुकूँ-बख़्श छाँव ख़्वाब हुई जो कड़ी धूप में मयस्सर थी तेरी छितनार शख़्सियत के तले दोस्त अहबाब रश्क करते थे तेरी भरपूर परवरिश के तुफ़ैल हम बहन भाई जिस तरह से पले तेरा एहसान है कि तू ने हमें इल्म-ओ-इरफ़ाँ से हम-कनार किया इक दर-ए-आगही को वा कर के राज़-ए-हस्ती को आश्कार किया आँख पुर-नम है मुज़्महिल है दिमाग़ देख कर तेरे ज़ौक़ का इज़हार ज़र्द लाठी क़राक़ली टोपी गर्म लोई कुतुब की अलमारी दिल परेशाँ है देख कर तेरी सुरमई वास्केट सियह पा-पोश जो तिरी क़ुर्बतों में हासिल था अब कहाँ ईद का वो जोश-ओ-ख़रोश ऐसा ख़ुश-बख़्त शख़्स होगा कोई जिस की औलाद उस पे नाज़ करे है दुआ दिल से उस जहान में भी रब तुझे और सरफ़राज़ करे