खुली है ख़त्म-ए-मराहिल पे सूरत-ए-मंज़िल ये एक सब्र का समरा है वज़्अ-दारों को गुलू का शहद बर आया लब-ए-शहादत पर तुलूअ'-ए-माह-ए-मुबारक हो इंतिज़ारों को तुलू-ए-सुब्ह-ए-मुसाइद से शाम-ए-इशरत तक बिसात-ए-शौक़ सजाएगी जश्न-ज़ारों को ज़रा सी बात है ईमा-ए-रौशनी समझो अंधेरा ज़ाहिर-ओ-बातिन का चाक-चाक रहे रहे न मुसहफ़-ए-हस्ती कुदूरतों से ग़लीज़ मताअ'-ए-फ़े'ल-ओ-सुख़न लग़्ज़िशों से पाक रहे सफ़ा-ओ-सिद्क़ हों किरदार की खुली तहरीर न कोई वहम हो बाक़ी न कोई बाक रहे ज़हे ये हुब्ब-ए-बहम ऐ उख़ुव्वत-ए-इस्लाम तिरा वजूद ही शहकार है नबुव्वत का बशर-शनास अनासिर का मरकज़-ए-मानूस सदा-बहार गुलिस्ताँ वफ़ा अक़ीदत का बस एक सीना-ए-मोमिन में जज़्बा-ए-ईसार रहेगा मद्द-ए-मुक़ाबिल ये हर अज़िय्यत का वतन के मा'रज़-ए-हर-फ़र्ज़-ओ-ज़िम्मेदारी में शुऊ'र-ए-ज़ीस्त का आग़ाज़-ए-बा-वक़ार है ईद क़दम क़दम में समेटे कई सियाक़-ओ-सबाक़ उरूज-ए-क़ौम की जानिब नया शिआ'र है ईद बस एक नज़्म है जम्हूर के इरादों का ये बंदगी का इजारा न इख़्तियार है ईद