इक सितारा आदर्श का

ऐ तमाशा-गाह-ए-आलम रोए तू
माह-ए-नौ

हम देखते तुझ को किस अरमान से
देखते ही देखते तहलील हो जाना तिरा

देखते हम
फिर भी तुझ को ढूँड रहते उसी

सूने उफ़ुक़ में ऐ हिलाल
वक़्त के दरिया में माही-गीर ने

डाला है जाल
किस लिए साहिल का पत्थर बन के

माही-गीर
बैठे हों यहाँ

थाह में डूबे हुए वो मेहर-ओ-माह
बन चुके होंगे ग़ुबार-ए-राएगाँ

या तमाशा सीना-ए-शमशीर से बाहर दम-ए-शमशीर का
मौजों में बहता

देखते रहते हो तुम
बे-सबब आँखों से कब

यूँ मए छलकती है
नशात दीद की

कौन हो तुम
और गागर अपनी ले जाती हो

किस आँगन की और
वो सुहाना सा उजाला

झूमता सागर के पार
गुल-बदामाँ एक आँगन शाम के तारे का है

मेरा नहीं
वो घना बन भी पुराना आश्रम है

झिलमिलाती ओस का
मेरा नहीं

मैं तो गूँगे ख़ाक-दाँ की
अन-कही

ऐ अजनबी
अन-कही से कहनी सुननी तक पहुँचना

सहल कब है
दरमियान हाइल मिलेगा

इक ख़ला-ए-बे-कराँ
सोच लो

है वक़्त अब भी
वर्ना फिर ऐ

बानू-ए-मासूम-ओ-ज़ीरक
रंजिशें कितनी खड़ी हैं राह में

फिर न साहिल था
न वो साहिल का पत्थर

जो नज़र आया
वो ता-हद्द-ए-नज़र फैला हुआ

इक पुर-आशोब-ओ-पुर-असरार
बहर-ए-ना-पैदा कनार

हम ने इंसाँ का जन्म पाया
सितारे गा रहे थे

किस अमल के इजरा में
पाया सितारो

तुम ने इंसाँ का जन्म
हम तो इंसाँ के जन्म में भी सितारे ही रहे

बे-कराँ नीलाहटों में
रू झमक उठती है रह रह कर

अना
कहकशाँ-दर-कहकशाँ बिखरे सवाबित

और सय्यारों के बीच
फ़ासले जज़्ब-ओ-कशिश के

उन की पैमूदा हदें
बढ़ते बढ़ते ज़ारी दाइम

बनातुन्ना'श की
घटते घटते वर्ता दाम-ए-फ़ना

धूम केतू बे-मुहारी में मगन
एक झाला सा बरस कर खुल गया चिंगारियों का

कितनी तहज़ीबें शहाबी टिमटिमा कर बुझ गईं
नगरियाँ बाबुल सी महवश

शहपर-ए-अफ़रशतगाँ उलझे हुए
जिन की सुरीली तान हैं

उन की ग़र्क़ाबी कहानी है
पुरानी भी नई भी

उन की अपनी आत्मा की थाह से
उमडे हुए तूफ़ान हैं

अपनी फ़ितरत के तजल्ली-ज़ार से
टूट कर गिरते कवाकिब

जा समाते हैं ख़ुदा जाने कहाँ
जा-ब-जा अज़दारहन काले दहाने

जिन का मुँह सब कुछ निगल कर फिर खुला
देर कितनी हो चुकी

तब कहीं जा कर वो इक दिन ये समझ पाए
कि सन्नाटा

ख़ुद अपने दिल के अंदर का था
बाहर का न था

रुस्तगार अज़-पंजा-ए-बेदर्दी-ए-लैल-ओ-नहार
बंद आँखों के नगर में

कैफ़-ए-आलमगीर का अरमाँ मिला
जिस से वावैला नशेबों का न टकराया कभी

वो औज-ए-बाम
सरसरी उस से गुज़र जाने में पिन्हाँ आफ़ियत

ऐ रह-नवर्द
ऐ नज़र-वर ऐ दिल-आसा

रौज़न-ए-ज़ुल्मात हस्त-ओ-बूद
ऐ पैक-ए-जहाँ-पैमा ख़िज़र

कील सी दहलीज़ में पैवस्त ये कैसी चमक है
धूल अज्राम-ए-फ़लक की

गुत्थियाँ मौहूम सी रिश्तों की ये कैसी हैं
सुलझाना नहीं ज़िन्हार वर्ना

हू का आलम है नमूदान की
सुलझ जाने के बाद

सब्ज़ा-ए-नौरस्ता के पर्दे में सारे ऊँच नीच
पाटते रहने के ऐ आनंद

बहते पानियों की आत्मा
किस के हैं ये उस्तुख़्वाँ

मलबे में ढलते उस्तुख़्वाँ
ख़ाक-ए-उफ़्तादा की अगली और पिछली

हर परत के
बे-ज़बाँ ता'मीर-ए-कार

मेहरबाँ सा इक तबस्सुम
और शाइस्ता इशारा घर की जानिब

जैसे घर के बाम-ओ-दर पर हो नविश्ता
हर सवाल-ए-ना-शकेबा का जवाब

फिर उधर देखा तो सब कुछ
दश्त-ए-इख़्फ़ा मैं था अदीम

ग़ार कुटियाएँ मचानें
घर घरौंदे

सारे आसार-ओ-मज़ाहिर
गूँज में अपनी समो कर

ले उड़ी बाँग चील
वो सफ़र बे-संग-ए-मील

इक अधूरे आसमानी ख़्वाब का
उन की आँखों में ख़ुमार

ज़ेब-तन गर्द-ओ-ग़ुबार
जैसे मिट्टी में सनी

धड़कनें धरती की
नर-नारी की तजसीमों में आलम-ए-आश्कार

और फिर उफ़्ताद पर उफ़्ताद
दूर उफ़्तादगी

शाहराहें ना-तराशीदा सभी ख़ुश्की तिरी की
और काग़ज़ भी पता का गुम-शुदा

बे-ख़बर निकले हवा-ए-दश्त के झोंके सभी
और सहल-अंगार ताइर भी न दे पाए सुराग़

है कहाँ अर्फ़ात
वो इक वादी-ए-दूर-दराज़

राह में आँखें बिछाए
फूल नर्गिस के मिले

राह में महके गुलाब और राह में लाले खिले
दीद की लेकिन उन्हें रफ़्तार फ़ुर्सत भी तो दे

मुन्कशिफ़ करती हुई
बे-नाम जल-परियों को

गहरे पानियों में एक लम्हाती तरंग
बे-निशान बन-बासियों पर

टहनियों में आस के मामन किसी
भूले भटके ज़मज़मा की राह तकते

द्वार खोले जागते हैं
रात काली बरशगाली

जुगनुओं की ना-गहाँ यलग़ार
फिर गहरा अंधेरा

और जिबिल्लत की अथाह
शक्तियों का

बन में डेरा
मन में डेरा

साहिलों की रेत में सौंपे हुए
इक वदीअ'त की तरह हशरात-ए-आब

ख़ोल अपने तोड़ते हैं
और बे-रहबरी ही आहिस्ता-ख़िराम

अपने मन की चाँदनी में
रेंगने लगते हैं

शोर-ए-आब भी कहते हैं वो
इक सम्त है

इक सम्त है सेहर-ए-कशिश भी
सब दिशाएँ ना-गहाँ

इक साथ भरती हैं हुंकारा
भूलने लगते हैं जब मासूम ज़ाएर

जल दिशा
कितने ख़ूँ-आलूद पंजे

कितने ख़ंजर घात में हैं
फिर भी जारी यात्रा

वो हज़र बे-बर्ग-ओ-सामाँ
घर ख़स-ओ-ख़ाशाक की रचना अधूरी

जिस में फ़ितरत
झाँकती रहती कि देखे

अपने आईन तो उफ़ुक़ का जमाल
बज़्म-आरा आइना-दर-आइना

ज़र्द फूलों पर थिरकती तितलियों का
पैरहन पीला सुनहरा

घास पर लहराए टिड्डों की हरी धानी क़बा
रंगरेज़ी दहर के इस दौर की

गुज़रा है जो
रफ़्ता-ज़ियाद

जब न था इंसान का मज़कूरा अशिया में शुमार
इस तरफ़ पहले कभी देखा न था

अब जो देखा है तो जैसे
फिर सिरा आग़ाज़ का हाथ आ रहा है

ये वही अंजाम है
धड़का था जिस का

हस्त-ओ-बूद इंसान की जब दहर में थी बे-शनाख़्त
रहीन-ख़ाना

ख़ानमाँ-बर्बाद ऐ बाँग-ए-रहील
तू ने देखा है कभी

शफ़्फ़ाफ़ उथले पानियों की तह में
मूंगे के जज़ीरों का दयार

वो समय की नीव थी गर्म-ओ-गुदाज़
मुद्दतों ता'मीर की दीवार अपनी

सादा दिल आँगन ने जिस पर
ये तबस्सुम भी किसे मिलता है

जिस के सोज़ से
मादन ज़र-ए-गुल का पिघलता ही रहा

साँचों में ढलता ही रहा
नस्लों का फ़ौलाद-ए-गराँ

ख़ानमाँ-बर्बाद ऐ बाँग-ए-रहील
ज़नान-ए-मिस्र

एक इब्रानी पयम्बर-ज़ादा को
हम ने जिस घर का भरम रखने की ख़ातिर

दाख़िल-ए-ज़िंदाँ किया था
कैसे आख़िर उस को बैत-ए-अंकबूत

मान लें हम बे-दलील
वो हक़ीक़त की सिलों पर

क़ाएम इक ता'मीर कैसी थी
वो सक़्फ़-ओ-बाम कैसे थे तुझे मा'लूम क्या

महफ़िलें आरास्ता पैरास्ता
जिन का तहम्मुल सेहर-कार

ख़ुशबुओं के ताने-बाने बुनने वाले
मुजमिरों की ध्वनियों से आज भी

महके महके हैं तमद्दुन के दयार
आज भी आसार देते हैं गवाही

नक़्श-कारी कैसी अनमिट थी वो
क़िस्मत की लकीरों से जुड़ी

हम ने इब्रानी पयम्बर-ज़ादों से
पत्थर तरशवाए कि बा'द-अज़-मर्ग भी

पाया-ए-अहराम में पिन्हाँ रहे घर की असास
लाल-ओ-गौहर ख़ज़ाने

शहद-ओ-गंदुम से ज़ुरूफ़ उबले हुए
तख़्त-ओ-ताज-ओ-मोहर-ए-शाही के निगहबाँ

हर्बा-हा-ए-आहन-ओ-फ़ौलाद
और दस्ते ग़ुलामान-ए-जवाँ के

काहिनों की फूँक
हामानों की तदबीर-ए-सियासत में ज़हर-ए-हलाहिल

पासबानी में मगन
सो रहे हैं अन-गिनत फ़िरऔन

ऐ बाद-ए-सबा आहिस्ता चल
बाँग-ए-रहील

शेवन तौक़-ओ-सलासिल
काख़-ओ-ऐवाँ से निकल कर

कू-ब-कू
यम-ब-यम दरिया-ब-दरिया जू-ब-जू

वो बिसात-ए-रक़्स दरबारों से हो कर
फैलती दफ़्तर-ब-दफ़्तर

अंजुमन-दर-अंजुमन घर घर बिछी
पत्ती पत्ती में उतर आई थी कड़वाहट

जड़ें थीं नीम की
ऐ रहीन-ख़ाना

क्या तुझ को सुनाई दी कभी
इस दुआ की गूँज

जिस को सुन के वो तस्वीर-ए-आब
नील

शाही क़स्र की
डूबी डूबी सीढ़ियों से दूर

ठाठें मारता
दरिया-ए-ना-पैदा कनार


Don't have an account? Sign up

Forgot your password?

Error message here!

Error message here!

Hide Error message here!

Error message here!

OR
OR

Lost your password? Please enter your email address. You will receive a link to create a new password.

Error message here!

Back to log-in

Close