इकाई का निरवान By Nazm << मेयार-ए-सुकूँ हक़ीक़त मुबहम >> चेहरों के गिर्दाब में हर-सू जिन में इकाई फँसी हुई है मुश्तरकात के तूफ़ानों में फ़र्द की कश्ती घिरी हुई है तन्हाई देती है सहारा फिर भी नहीं होता कुछ हासिल ख़ुद को अगर पतवार बना लो दूर नहीं निरवान का साहिल Share on: