न इतना तेज़ चलो कि थक जाओ न इतना रुक रुक के चलो कि जम जाओ न खोलो लब यूँ भी न इन को इतना बंद करो कि जिन पर न शबनम भी ठहर पाए न दो आवाज़ इतनी आहिस्ता जिसे सुनने के लिए रूह भी तरस जाए न उस को इतना बढ़ाओ कि मेरा वजूद मेरे लिए अज़ाब बन जाए न रहो इतने मसरूर कि मैं हाकिम-ए-वक़्त बन जाऊँ न रहो उदास इतने कि मैं वक़्त से पहले ही बे-मौत मर जाऊँ न इस क़दर बिखराओ अपनी ज़ुल्फ़ों को कि घने घने साए भी सहम जाएँ न उन को इतना सँवारो कि चलते लोग राह में रुक जाएँ न रहो इतने दूर कि मैं तरस जाऊँ न आओ इतने क़रीब कि मैं झुलस जाऊँ न इतना तेज़ चलो कि थक जाओ न इतना रुक रुक के चलो कि जम जाओ