सियाही-ए-शब मुझे कुछ ऐसा महसूस हो रहा है कि जैसे कोई सियाह नागिन किरन की दहलीज़ पर खड़ी हो अगर वो बाहर क़दम निकाले तो उस को डस कर हलाक कर दे किरन अँधेरे से इतनी ख़ाइफ़ कि जैसे कोई हसीन हिरनी किसी दरिंदे के डर से जा कर घने दरख़्तों में छुप गई हो वो ख़ौफ़ से थरथरा रही हो कि जैसे तूफ़ाँ से शाख़ काँपे वो चारों जानिब हिरासाँ नज़रों से तक रही हो किरन है ख़ाइफ़ सियाही ग़ालिब न जाने कब तीरगी कटेगी न जाने कब रौशनी मिलेगी