ज़माने की हवा बदली उधर रंग-ए-चमन बदला गुलों ने जब रविश बदली अनादिल ने वतन बदला तरीक़ा आश्नाई का कभी ऐसा न बदला था कि चाल उश्शाक़ ने बदली हसीनों ने चलन बदला बदलते आए हैं यूँ तो हमेशा दौर गर्दूं के न ऐसा भी कि हम बदले हमारा कुल जतन बदला मक़ासिद मज़हब ओ मिल्लत के बदले दौर-ए-आलम ने सहाइफ़ की शरह बदली किताबों का मतन बदला बदल डाला है ऐसा मग़रिबी तहज़ीब ने हम को मज़ाक़-ए-ख़वान-ए-निअमत और तर्ज़-ए-पैरहन बदला पुरानी चाल बे-ढंगी हमारी देखें कब बदले अभी तक जुग ही बदले थे ग़ज़ब ये है क़रन बदला न बदला पर न बदला हाए तर्ज़-ए-म'अशरत क़ौमी अगरचे सारी दुनिया का हुनर और इल्म-ओ-फ़न बदला निज़ाम-ए-शाएरी में हाए आया इंक़लाब ऐसा कि शान-ए-नज़्म बदली और अंदाज़-ए-सुख़न बदला सलीक़ा इंतिक़ाद-ए-जिंस-ए-हिरफ़त का नहीं हम को ज़र-ए-ख़ालिस से अबरेशम-नुमा यूरोप ने सन बदला न बदला है न बदलेगा फ़क़त क़ानून-ए-इस्लामी 'क़मर' जब तक कि क़ुदरत ने न ये चर्ख़-ए-कुहन बदला