सियह-रात में टिमटिमाते सितारों के नीचे ख़रोशाँ समुंदर की मौजें तुझे ढूँढती हैं ख़रोशाँ हवा की सदाओं में तेरी सदा है मिरा दिल तुझे ढूँढता है सियह-रात अश्कों की शबनम में सोई हुई है हर इक पल हर इक लम्हा माज़ी का ज़िंदा है मौजूद में जागता है मगर तेरा पैकर तह-ए-ख़ाक अंधेरों के मामन में सोया हुआ है मिरा दिल कि मातम-गर-ए-रफ़्तगाँ है तुझे ढूँढता है मैं आसूदा-ए-रेग-ए-ख़ामोश उस रात की जलती आँखों को देखूँ सियह-रात में टिमटिमाते हुए उन सितारों से पूछूँ ख़रोशाँ समुंदर में डूबा हुआ चाँद किसी अजनबी सर ज़मीं पर तबस्सुम-कुनाँ है नुक़ूश-ए-कफ़-ए-पा की मंज़िल कहाँ है? यम-ए-ज़िंदगी सैल-दर-सैल बहता हुआ एक लम्हे को रुक कर पलट कर न देखे सियह-रात में टिमटिमाते सितारों के नीचे फ़क़त एक शब बे-सदा जागती है शब-ए-बे-सदा पूछती है बिफरती हुई मौज-ए-दरिया किधर से चली थी? किधर को चली है? मिरा दिल कि मातम-गर-ए-रफ़्तगाँ है किसे ढूँढता है