जब मिले थे तुम से पहली मर्तबा ये लगा जैसे कि सब कुछ पा लिया मिल गई थी इस जहाँ की हर ख़ुशी बदली बदली हो गई थी ज़िंदगी एक दिन फिर हाए ऐसा भी हुआ हो गए इक दूसरे से हम जुदा मिलने की बस आस बाक़ी रह गई इक तड़पती प्यास बाक़ी रह गई आज भी इस दिल को मेरे है यक़ीं क्या पता किस मोड़ टकराए कहीं इस लिए उम्मीद रख कर बरक़रार करता हूँ हर-पल तुम्हारा इंतिज़ार