इंतिज़ार By Nazm << तर्ग़ीब काली धूप >> मिरी बे-ख़्वाब आँखों में मिरी वीरान आँखों में नहीं है दिलकशी कोई नहीं है दिलबरी कोई मगर कुछ है जिसे हर सुब्ह सूरज की किरन आ कर सलाम-ए-शौक़ कहती है अदब से चूम लेती है Share on: