मुसलसल हवा ने समेटे हैं पत्तों के बिखरे ख़ज़ाने सफेदे की शाख़ों से तारों का झुरमुट मोहब्बत के फ़ित्ने का जादू जगाने चला आ रहा है अंधेरे में रौशन ज़मिस्ताँ की रातों का यख़-बस्ता जोबन भड़कने लगा है सुलगता तसव्वुर तमन्ना की ईज़ा-परस्ती का दामन बढ़ा जा रहा है उलझने से हासिल हुई है न आसान होगी ये मुश्किल बला-ख़ेज़ मौजों के रस्ते में तन्हा खड़ा है समुंदर का सद-चाक साहिल कोई गा रहा है