क़ल्ब ओ नज़र की ज़िंदगी दश्त में सुब्ह का समाँ चश्मा-ए-आफ़्ताब से नूर की नद्दियाँ रवाँ! हुस्न-ए-अज़ल की है नुमूद चाक है पर्दा-ए-वजूद दिल के लिए हज़ार सूद एक निगाह का ज़ियाँ! सुर्ख़ ओ कबूद बदलियाँ छोड़ गया सहाब-ए-शब! कोह-ए-इज़म को दे गया रंग-ब-रंग तैलिसाँ! गर्द से पाक है हवा बर्ग-ए-नख़ील धुल गए रेग-ए-नवाह-ए-काज़िमा नर्म है मिस्ल-ए-पर्नियाँ आग बुझी हुई इधर, टूटी हुई तनाब उधर क्या ख़बर इस मक़ाम से गुज़रे हैं कितने कारवाँ आई सदा-ए-जिब्रईल तेरा मक़ाम है यही एहल-ए-फ़िराक़ के लिए ऐश-ए-दवाम है यही किस से कहूँ कि ज़हर है मेरे लिए मय-ए-हयात कोहना है बज़्म-ए-कायनात ताज़ा हैं मेरे वारदात! क्या नहीं और ग़ज़नवी कारगह-ए-हयात में बैठे हैं कब से मुंतज़िर अहल-ए-हरम के सोमनात! ज़िक्र-ए-अरब के सोज़ में, फ़िक्र-ए-अजम के साज़ में ने अरबी मुशाहिदात, ने अजमी तख़य्युलात क़ाफ़िला-ए-हिजाज़ में एक हुसैन भी नहीं गरचे है ताब-दार अभी गेसू-ए-दजला-ओ-फ़ुरात! अक़्ल ओ दिल ओ निगाह का मुर्शिद-ए-अव्वलीं है इश्क़ इश्क़ न हो तो शर-ओ-दीं बुतकद-ए-तसव्वुरात! सिदक़-ए-ख़लील भी है इश्क़ सब्र-ए-हुसैन भी है इश्क़! म'अरका-ए-वजूद में बद्र ओ हुनैन भी है इश्क़! अाया-ए-कायनात का म'अनी-ए-देर-याब तू! निकले तिरी तलाश में क़ाफ़िला-हा-ए-रंग-ओ-बू! जलवतियान-ए-मदरसा कोर-निगाह ओ मुर्दा-ज़ाैक़ जलवतियान-ए-मयकदा कम-तलब ओ तही-कदू! मैं कि मिरी ग़ज़ल में है आतिश-ए-रफ़्ता का सुराग़ मेरी तमाम सरगुज़िश्त खोए हुओं की जुस्तुजू! बाद-ए-सबा की मौज से नश-नुमा-ए-ख़ार-अो-ख़स! मेरे नफ़स की मौज से नश-ओ-नुमा-ए-आरज़ू! ख़ून-ए-दिल ओ जिगर से है मेरी नवा की परवरिश है रग-ए-साज़ में रवाँ साहिब-ए-साज़ का लहू! फुर्सत-ए-कशमुकश में ईं दिल बे-क़रार रा यक दो शिकन ज़्यादा कुन गेसू-ए-ताबदार रा लौह भी तू, क़लम भी तू, तेरा वजूद अल-किताब! गुम्बद-ए-आबगीना-रंग तेरे मुहीत में हबाब! आलम-ए-आब-ओ-ख़ाक में तेरे ज़ुहूर से फ़रोग़ ज़र्रा-ए-रेग को दिया तू ने तुलू-ए-आफ़्ताब! शौकत-ए-संजर-ओ-सलीम तेरे जलाल की नुमूद! फ़क़्र-ए-'जुनेद'-ओ-'बायज़ीद' तेरा जमाल बे-नक़ाब! शौक़ तिरा अगर न हो मेरी नमाज़ का इमाम मेरा क़याम भी हिजाब! मेरा सुजूद भी हिजाब! तेरी निगाह-ए-नाज़ से दोनों मुराद पा गए अक़्ल, ग़याब ओ जुस्तुजू! इश्क़, हुज़ूर ओ इज़्तिराब! तीरा-ओ-तार है जहाँ गर्दिश-ए-आफ़ताब से! तब-ए-ज़माना ताज़ा कर जल्वा-ए-बे-हिजाब से! तेरी नज़र में हैं तमाम मेरे गुज़िश्ता रोज़ ओ शब मुझ को ख़बर न थी कि है इल्म-ए-नख़ील बे-रुतब! ताज़ा मिरे ज़मीर में म'अर्क-ए-कुहन हुआ! इश्क़ तमाम मुस्तफ़ा! अक़्ल तमाम बू-लहब! गाह ब-हीला मी-बरद, गाह ब-ज़ोर मी-कशद इश्क़ की इब्तिदा अजब इश्क़ की इंतिहा अजब! आलम-ए-सोज़-ओ-साज़ में वस्ल से बढ़ के है फ़िराक़ वस्ल में मर्ग-ए-आरज़ू! हिज्र में ल़ज़्जत-ए-तलब! एेन-ए-विसाल में मुझे हौसला-ए-नज़र न था गरचे बहाना-जू रही मेरी निगाह-ए-बे-अदब! गर्मी-ए-आरज़ू फ़िराक़! शोरिश-ए-हाव-ओ-हू फ़िराक़! मौज की जुस्तुजू फ़िराक़! क़तरे की आबरू फ़िराक़!