जागती आँखों का ख़्वाब By Nazm << नानी का पानदान ज़ंजीर-ए-ग़ुलामी >> ज़िंदगी इक जागती आँखों का ख़्वाब ख़्वाब जो देखा न पहचाना गया एक साअ'त आदमी को उस के होने का यक़ीं दूसरी साअ'त बिखर जाए फ़ज़ाओं में कहीं इक दरीदा-लब सी आवाज़-ए-जरस जैसे उस की कोई मंज़िल ही नहीं Share on: