जहाँ तुम ये नज़्म ख़त्म करोगी वहाँ एक दरख़्त उग आएगा शिकार की एक मुहिम में तुम उस के पीछे एक दरिंदे को हलाक करोगी कशती-रानी के दिन उस से अपनी कश्ती बाँध सकोगी एक इनआम-याफ़ता तस्वीर में तुम उस के सामने खड़ी नज़र आओगी फिर तुम उसे बहुत से दरख़्तों में गुम कर दोगी और उस का नाम भूल जाओगी और ये नज़्म