अँधियारे की काली मटिया मन को फाड़े खाएँ शमशानों के हाघ डकारें अंधे कुएँ बुलाएँ पगडंडी के शेष नाग जी पग पग डसते जाएँ पेड़ राक्षस बादल रावन घर भुतने बन जाएँ ध्यान के अंदर पथ पे बीती घड़ियाँ उड़ती आएँ मैं सीता बन-बास को निकली बिरह की अग्नी जलाए आगे आगे राम जी नाहीँ पीछे लछमन नाए