ज़हर By Nazm << मोर नाच नमाज़ >> छपक की आवाज़ के साथ ज़ेहन के पानियों में गिरता है लफ़्ज़ों का पत्थर बनते बिगड़ते एहसासों के घेरे मिट जाएँगे बिना कोई निशान छोड़े मगर ये ज़हर-आलूदा पत्थर पड़े रहेंगे यूँ ही ज़ेहन की तलहटियों में रेंगते अपनी ही तरह ज़हर-आलूदा Share on: